Friday 19 October 2012

आशा की किरण

                  आशा की किरण

सूरज को उगने दो
आशाओं को जगने दो
मत डरो  तुम अँधेरे से
एक किरण उम्मीद की ---------
खुशबू  आए फूलों की ----------
खिलते रहो ऐसे तुम चमन में
मुरझाए फूलों को सजने दो
सूनेपन  में आवाज़ों  को
बजने दो
तन्हाई  में महफ़िल को सजने दो
मत उलझो तुम
मन की उलझनों में
खोलो झरोखों को
लहराने दो पुरवाई को
महसूस करो ताज़गी  को
जीवन में आने दो आशाओं की
किरण को
तुम सँवारो अपने आप को ।

Thursday 24 May 2012

साथी

साथी 

कभी -कभी बहुत बुरा  लगता है ,

जब मित्रों का साथ छूटता है 

आने वाले पल से कुछ कदम आगे ,

खुशी मिलती है जो दुःख में बदल जाती है 

भविष्य में आगे बढ़ने में देते सीढी की तरह साथ ,

और संसार में जाने जाते बुद्धिमान 

मित्र,जैसे पीछे छूटीकोई परछाई 

दिल और दिमाग में एक सुहानी याद की तरह 

सफलता की सीढी पर चढ़ने में देते साथ ,कुछ प्यारे रिश्ते  बनाते  हुए 

मेरे कुछ हमउम्र  साथी 

संसार रूपी दुख  के पिंजरे से करते हुए आज़ाद 

मेरी इच्छा है कि मुझे कुछ ऐसे मिले साथी 

जिनसे  मैं बाँटू सुख -दुःख ,सुबह -शाम 

जब मैं हँसू तो वे हँसे

और  मेरी खुशियाँ बढ़ाएँ 

जब मैं ठ गी जाऊं ,वे दुःख मनाए

तो वे मेरे सच्चे साथी बनकर आये 

और  तब प्रभु से प्रेरणा पाकर 

मैं इच्छित फल पाऊं 

किस्मत या सौभाग्य से जिस मित्र कि मैं तारीफ़ करूँ 

और मेरी थकी आँखें अनकही खुशी  पायें 

मैं उस प्रभु का धन्यवाद करूँ जिसने 

मेरे लिए  ऐसे साथी भेजे 


और


नए उजाले की शुरुआत

नए  उजाले की शुरुआत 

पूरी रात जागकर

मैंने चाँदनी को निहारा ,

चाँद ,एक सपने जैसा सुंदर था ,

नीली -नीली आकाश गंगा  की दूधिया लहरों में तैरता हुआ 

अकेलेपन का सहारा 'मुठ्ठीभर सितारों के साथ 

विस्तृत नीलाभ गगन में 

प्रतीक्षारत सूर्य की सुनहली रश्मिरथी पर 

और तभी क्षितिज पर सूर्योदय हुआ 

नई उम्मीदों और आशाओं के साथ प्रतीक्षा 

की समाप्ति  के साथ 

यूँ मेरे सुंदर दिन की शुरुआत  हुई 

Thursday 19 April 2012

ज़िन्दगी की ज़रूरतें

ज़िन्दगी की ज़रूरतें
पूरी करते- करते
सारा जीवन बीत जाता है
और बहुत सी चीज़ें
अछूती  रह जाती है
हम दुनिया के अंदर रहते हुए
घर के घर में रह जाते हैं
क्यों ,हरेक व्यक्ति
दूसरे के दुख को    समझने  की कोशिश
नहीं करता  
क्यों नहीं ,हम साहित्य ,संगीत की
दुनिया  का आनंद लेते
क्यों,

हम केवल जीवन की आवश्यकताओं
को पूरा करने में लगे रहते हैं
मैंने चाहा ,
कि कुछ लोगों को
इन चीजों में रूचि जगाऊँ
लेकिन सब व्यर्थं निकला
क्योंकि ,वो सब मेरी तरह
इन बेकार के शौकों
को नहीं पालते ,
क्योंकि,
ये शौक
जीवन की मूलभूत आवश्यकता
रोटी ,नहीं उपजा सकते



Saturday 24 March 2012

खाड़ी- युद्ध को समर्पित एक सैनिक की व्यथा

 

मैंने देखा है जिंदगी  को
 भागते हुए उन अंतहीन
इच्छाओं   को पूरा करने  के लिए /
मैंने देखा है जिंदगी  को
सिसकते हुए ,रेंगते हुए /
मैंने सुनी है आहट मौत की
मैंने महसूस  किया  है मोहताजी  को
मैंने इंतजार  किया है एक
लम्बी बीमारी के बाद मौत का
ताकि  खामोश  एक लम्बी
नींद  सो सकूँ  इस दुनिया से  दूर
क्योकि  मैंने भोगी है एक लम्बी  
जीवन यात्रा
मैंने देखा  है अपने लोगो को
अपने घर पर  मेरी ही मौत की
दुआएं  करते
    

वक्त

ये जो वक्त है बदल जायेगा
तुम राह पे चलो तो सही  हमसफ़र
मिल जायेगा
ये जो तन्हाई का आलम है कट जायेगा
तुम हंसो तो सही गन ख़ुशी में बदल जायेगा
क्यों उदासी को अपनी मंजिल हो बनाये हुए
बहुत खुशियाँ हैं  ज़माने में लूट सको तो
वक्त बदल जायेगा
तुम खुद को गम में हो डुबोये हुए
पोंछ कर अश्क मुस्काओ  तो
वक्त बदल जायेगा

भावकणिका

ये आसमाँ ,ये बादल
ये शाम का धुऑ
ये झूमती हवाएँ
ये मंदिरों की घंटियाँ
ये खिलखिलाती बच्चियाँ
ये चहचहाती चिड़ियाँ
बड़े अच्छे लगते हैं
 ये कितने पास हैं हमारे
हम कितने दूर हैं इनसे





मैं

मैं

मैं  और मेरी तन्हाईयाँ  बिलकुल
अकेले  हैं
लेकिन  कभी -कभी
जब परछाई देती है साथ
तब
मैं  महसूस करती हूँ
कि मैं अकेली नहीं  हूँ
लेकिन जब
कभी परछाई भी छिप जाती है
तब मैं
फिर से
अकेली हो जाती हूँ
बहाने लगती  हूँ आंसू
गोया सारे ज़माने  का
गम सिमट आया हो
इन उदास  आँखों  में
फिर कुछ देर बाद
आंसू पोंछ  कर
सब कुछ पीछे छोड़  कर
अपनी  परछाई  के
साथ  कदम से कदम
मिलाने लगती हूँ
फिर मैं अकेली नहीं  रहती
  

Friday 9 March 2012

एक प्रश्न

                                  एक प्रश्न
           कौन  होते है  ये आतंकवादी लोग ?
इंसान को इंसान न समझने वाले
क्या  वो खुद इंसान नहीं होते ?
क्या वो हमारी  तरह दुखी नहीं  होते ?
क्या उनके  पास एक दिल रूपी
 मशीन  नहीं होती ?
क्या उस दिल  रूपी मशीन  में कोई 
कलपुर्जा  नहीं  होता ?
या  महज वो  मशीन गन  और कारतूस
का प्रयोग  करने वाली  यंत्रचालित  मशीनें हैं
         जो तथाकथित  नेताओं  की
विदेशी नीतियाँ   ,बाहरी  शक्तियों की

कठपुतलियाँ  मात्र  हैं
या  कुछ  और    भी -----------

कुछ लोग

कुछ लोग  मुर्दों  के नाम
का सहारा लेकर जीने का प्रयास करते  है
क्योकि वो एक अनजानी
जिंदगी  से डरते है
शायद वो नहीं जानते
कि वो क्या कर रहे है
मुर्दों के नाम का सहारा
लेकर वो मौत से नहीं
बच सकते
वो क्यों नहीं
हिम्मत से काम लेकर
   अनजाने  भय  का मुकाबला  करते
शायद वो इस भय पर
विजय प्राप्त  कर ले
और अपने पुराने
नाम को फिर  से
प्राप्त  कर ले
जब नाम बदल कर मौत से
लड़  नहीं पाते
तो मौत से क्यों घबराते है
मृत्यु   तो अमरता का दूसरा नाम  है
फिर किसी और के नाम का सहारा  क्यों -----?