Sunday 6 November 2011

हे भगवान !

हे भगवान !
तुम शायद जिस सृष्टि के
सञ्चालन कर्ता थे
वो शायद अब तुम्हारे नियंत्रण
से बाहर हो गयी है
ये दम तोड़ते जीवन मूल्य
जिनमे मानव सिर्फ छटपटाकर
रह गया है/

ये जनता का लहू चूसते
राजनीतिज्ञ जोंक 
भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी की
लम्बी भीड़ 
तीसरी दुनिया के आधुनिक 
युद्धों से त्रस्त लोग 
जो सिर्फ ज़िंदगी का 
क्रूरतम रूप ही 
देख सके है/
दहेज़ की आग 
में जलती लड़कियां
लालच की समिधा
बन चुकी है/
ईमानदारी सिर्फ किताबों में
ही बसी है/
और भी न जाने क्या-क्या है
जो देश में जंग लगी कील की
तरह लोगों के पाँव में
चुभने लगा है/
तुम शायद अब कुछ
नहीं कर सकते/
सिर्फ दूर से ही
मानव जाति को विनाश की
और जाते हुए रहोगे देखते---
 


Thursday 3 November 2011

mehak

महक
 एक  क्यारियों  वाला घर
जामुन ; अनार और
नीबू के  पेड़ों से सजा
तितलिओं से भरा
जवाकुसुम ;चंपा के पुष्पों
से ढका


बरसात में उठती
मिटटी  की सोंधी महक से महकता
 वो घर
अक्सर याद आता है /
ढेरों स्मृतियों  में
अक्सर क्यारियों
की मेड़ें
 फांदती  घर की ओर दोरती
 अपने कमरे तक पहुचती हू/  मगर फिर वापस क्यारियों में लोट  जाती हू 
तितलियों
 ओर फूलों के बीच

    
कुछ लोग  मुर्दों के नाम का सहारा लेकर जीने का प्रयास  करते है   

क्योंकि वो एक अनजानी जिन्दगी  से डरते है
 शायद वो नहीं जानते की वो क्या कर रहे है /
मुर्दों के नाम का सहरा लेकर वो मौत  से नहीं बच सकते /
वो क्यों नहीं
हिम्मत  से काम लेकर  अनजाने भय का मुकाबला करते /
शायद


 वो इस भय पर विजय प्राप्त करले और
अपने पुराने
नाम को फिर  से प्राप्त  करले /
जब नाम बदल कर मौत से लड़  नहीं पाते