Saturday 24 March 2012

खाड़ी- युद्ध को समर्पित एक सैनिक की व्यथा

 

मैंने देखा है जिंदगी  को
 भागते हुए उन अंतहीन
इच्छाओं   को पूरा करने  के लिए /
मैंने देखा है जिंदगी  को
सिसकते हुए ,रेंगते हुए /
मैंने सुनी है आहट मौत की
मैंने महसूस  किया  है मोहताजी  को
मैंने इंतजार  किया है एक
लम्बी बीमारी के बाद मौत का
ताकि  खामोश  एक लम्बी
नींद  सो सकूँ  इस दुनिया से  दूर
क्योकि  मैंने भोगी है एक लम्बी  
जीवन यात्रा
मैंने देखा  है अपने लोगो को
अपने घर पर  मेरी ही मौत की
दुआएं  करते
    

वक्त

ये जो वक्त है बदल जायेगा
तुम राह पे चलो तो सही  हमसफ़र
मिल जायेगा
ये जो तन्हाई का आलम है कट जायेगा
तुम हंसो तो सही गन ख़ुशी में बदल जायेगा
क्यों उदासी को अपनी मंजिल हो बनाये हुए
बहुत खुशियाँ हैं  ज़माने में लूट सको तो
वक्त बदल जायेगा
तुम खुद को गम में हो डुबोये हुए
पोंछ कर अश्क मुस्काओ  तो
वक्त बदल जायेगा

भावकणिका

ये आसमाँ ,ये बादल
ये शाम का धुऑ
ये झूमती हवाएँ
ये मंदिरों की घंटियाँ
ये खिलखिलाती बच्चियाँ
ये चहचहाती चिड़ियाँ
बड़े अच्छे लगते हैं
 ये कितने पास हैं हमारे
हम कितने दूर हैं इनसे





मैं

मैं

मैं  और मेरी तन्हाईयाँ  बिलकुल
अकेले  हैं
लेकिन  कभी -कभी
जब परछाई देती है साथ
तब
मैं  महसूस करती हूँ
कि मैं अकेली नहीं  हूँ
लेकिन जब
कभी परछाई भी छिप जाती है
तब मैं
फिर से
अकेली हो जाती हूँ
बहाने लगती  हूँ आंसू
गोया सारे ज़माने  का
गम सिमट आया हो
इन उदास  आँखों  में
फिर कुछ देर बाद
आंसू पोंछ  कर
सब कुछ पीछे छोड़  कर
अपनी  परछाई  के
साथ  कदम से कदम
मिलाने लगती हूँ
फिर मैं अकेली नहीं  रहती
  

Friday 9 March 2012

एक प्रश्न

                                  एक प्रश्न
           कौन  होते है  ये आतंकवादी लोग ?
इंसान को इंसान न समझने वाले
क्या  वो खुद इंसान नहीं होते ?
क्या वो हमारी  तरह दुखी नहीं  होते ?
क्या उनके  पास एक दिल रूपी
 मशीन  नहीं होती ?
क्या उस दिल  रूपी मशीन  में कोई 
कलपुर्जा  नहीं  होता ?
या  महज वो  मशीन गन  और कारतूस
का प्रयोग  करने वाली  यंत्रचालित  मशीनें हैं
         जो तथाकथित  नेताओं  की
विदेशी नीतियाँ   ,बाहरी  शक्तियों की

कठपुतलियाँ  मात्र  हैं
या  कुछ  और    भी -----------

कुछ लोग

कुछ लोग  मुर्दों  के नाम
का सहारा लेकर जीने का प्रयास करते  है
क्योकि वो एक अनजानी
जिंदगी  से डरते है
शायद वो नहीं जानते
कि वो क्या कर रहे है
मुर्दों के नाम का सहारा
लेकर वो मौत से नहीं
बच सकते
वो क्यों नहीं
हिम्मत से काम लेकर
   अनजाने  भय  का मुकाबला  करते
शायद वो इस भय पर
विजय प्राप्त  कर ले
और अपने पुराने
नाम को फिर  से
प्राप्त  कर ले
जब नाम बदल कर मौत से
लड़  नहीं पाते
तो मौत से क्यों घबराते है
मृत्यु   तो अमरता का दूसरा नाम  है
फिर किसी और के नाम का सहारा  क्यों -----?