Thursday 19 April 2012

ज़िन्दगी की ज़रूरतें

ज़िन्दगी की ज़रूरतें
पूरी करते- करते
सारा जीवन बीत जाता है
और बहुत सी चीज़ें
अछूती  रह जाती है
हम दुनिया के अंदर रहते हुए
घर के घर में रह जाते हैं
क्यों ,हरेक व्यक्ति
दूसरे के दुख को    समझने  की कोशिश
नहीं करता  
क्यों नहीं ,हम साहित्य ,संगीत की
दुनिया  का आनंद लेते
क्यों,

हम केवल जीवन की आवश्यकताओं
को पूरा करने में लगे रहते हैं
मैंने चाहा ,
कि कुछ लोगों को
इन चीजों में रूचि जगाऊँ
लेकिन सब व्यर्थं निकला
क्योंकि ,वो सब मेरी तरह
इन बेकार के शौकों
को नहीं पालते ,
क्योंकि,
ये शौक
जीवन की मूलभूत आवश्यकता
रोटी ,नहीं उपजा सकते



2 comments:

  1. बहुत खूब , बधाई.
    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .

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  2. nayapan liye hue......bahot achchi lagi.

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