Sunday 22 May 2011

बालिका वर्ष को समर्पित


    तुम
                           

तुम मेरी कहानी की एक ऐसी अनामिका पात्रा हो 
जो चाहकर भी अपनी
परिस्थितियों से लड़ नहीं पाती 
क्योंकि तुम बिलकुल अकेली हो 
उस चाँद की तरह 
जो सबके निद्रा में लीन हो जाने पर 
अपनी रोशनी बांटता है 
लेकिन तुम 
तो ऐसा भी नहीं कर सकती 
तुम वो चाँद हो जिसे 
ग्रहण  लग चुका है
और मैं 
मैं शायद तुम्हारी भविष्यवक्ता हूँ
मैं यहीं देख सकती हूँ
कि तुम कब ग्रहण से मुक्त होगी 
लेकिन तभी जब
ये तारे तुम्हारा साथ देंगे
परन्तु ये मुमकिन नहीं है
तब
तुम्हारा क्या होगा?
क्या तुम
संसार को कभी
अपनी उज्ज्वल शुभ्र
चाँदनी नहीं दे सकोगी



   

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