तुम
जो चाहकर भी अपनी
परिस्थितियों से लड़ नहीं पाती
क्योंकि तुम बिलकुल अकेली हो
उस चाँद की तरह
जो सबके निद्रा में लीन हो जाने पर
अपनी रोशनी बांटता है
लेकिन तुम
तो ऐसा भी नहीं कर सकती
तुम वो चाँद हो जिसे
ग्रहण लग चुका है
और मैं
मैं शायद तुम्हारी भविष्यवक्ता हूँ
मैं यहीं देख सकती हूँ
कि तुम कब ग्रहण से मुक्त होगी
लेकिन तभी जब
ये तारे तुम्हारा साथ देंगे
परन्तु ये मुमकिन नहीं है
तब
तुम्हारा क्या होगा?
क्या तुम
संसार को कभी
अपनी उज्ज्वल शुभ्र
चाँदनी नहीं दे सकोगी
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