भारत की स्वंतंत्रता में भाग लेने वाले न जाने
कहाँ खो गए
कहाँ गए वो आज़ादी
एक भीड़ तमाशा देखने वालो की
एक हुजूम तमाशा दिखलाने वालो का
कहाँ गया वो रामराज्य का सपना
कहाँ गयी वो वन्देमातरम की पुकार
अब है सिर्फ साँस लेती तस्वीरे
जिंदगी की तेज रफ़्तार में
दौडती चंद भावहीन लाशें
सिर्फ नाम का देश भारत
संसार के नक्शें में दिखाई देता हुआ भारत
देश को फिर से जीवित करने
कहाँ से आयेगें वो लोग
ज़रूरत है आज एक
और चाणक्य की
जो फिर से पिरो सके
मेरे भारत को एक सूत्र में
खोजती हूँ मैं.
mam bhot achhiii poem hain.....sachii mein mam kya btaun ...reallly mam apko toh ek poet hona chahiye tha....
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