नारी
नारी तुम कोमल नहीं क्रान्तद्रष्टा हो
तुम्हे अपनी जिंदगी जीने का पूरा हक है
तुम केवल एक बेटी ,बहिन
या माँ नहीं हो
तुम्हारा व्यकितत्व एक समूचा खंड है
तुम्हारा जीवन सिर्फ पतझड
का ही नहीं अपितु पतझड़ के बाद
वसंत का भी अधिकारी है
तुम एक संपूर्ण दर्पण हो
दर्पण के बिखरने पर भी
तुम पूर्ण रूप हो
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