मैं
मैं और मेरी तन्हाईयाँ बिलकुलअकेले हैं
लेकिन कभी -कभी
जब परछाई देती है साथ
तब
मैं महसूस करती हूँ
कि मैं अकेली नहीं हूँ
लेकिन जब
कभी परछाई भी छिप जाती है
तब मैं
फिर से
अकेली हो जाती हूँ
बहाने लगती हूँ आंसू
गोया सारे ज़माने का
गम सिमट आया हो
इन उदास आँखों में
फिर कुछ देर बाद
आंसू पोंछ कर
सब कुछ पीछे छोड़ कर
अपनी परछाई के
साथ कदम से कदम
मिलाने लगती हूँ
फिर मैं अकेली नहीं रहती
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