हे भगवान !
तुम शायद जिस सृष्टि के
सञ्चालन कर्ता थे
वो शायद अब तुम्हारे नियंत्रण
से बाहर हो गयी है
ये दम तोड़ते जीवन मूल्य
जिनमे मानव सिर्फ छटपटाकर
रह गया है/
ये जनता का लहू चूसते
राजनीतिज्ञ जोंक
भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी की
लम्बी भीड़
तीसरी दुनिया के आधुनिक
युद्धों से त्रस्त लोग
जो सिर्फ ज़िंदगी का
क्रूरतम रूप ही
देख सके है/
दहेज़ की आग
में जलती लड़कियां
लालच की समिधा
बन चुकी है/
ईमानदारी सिर्फ किताबों में
ही बसी है/
और भी न जाने क्या-क्या है
जो देश में जंग लगी कील की
तरह लोगों के पाँव में
चुभने लगा है/
तुम शायद अब कुछ
नहीं कर सकते/
सिर्फ दूर से ही
मानव जाति को विनाश की
और जाते हुए रहोगे देखते---
और भी न जाने क्या-क्या है
ReplyDeleteजो देश में जंग लगी कील की
तरह लोगों के पाँव में
चुभने लगा है/
Sach Hai Samay rahte Pahal karana aawshyak hai.... Gahari Abhivykti...