Sunday, 6 November 2011

हे भगवान !

हे भगवान !
तुम शायद जिस सृष्टि के
सञ्चालन कर्ता थे
वो शायद अब तुम्हारे नियंत्रण
से बाहर हो गयी है
ये दम तोड़ते जीवन मूल्य
जिनमे मानव सिर्फ छटपटाकर
रह गया है/

ये जनता का लहू चूसते
राजनीतिज्ञ जोंक 
भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी की
लम्बी भीड़ 
तीसरी दुनिया के आधुनिक 
युद्धों से त्रस्त लोग 
जो सिर्फ ज़िंदगी का 
क्रूरतम रूप ही 
देख सके है/
दहेज़ की आग 
में जलती लड़कियां
लालच की समिधा
बन चुकी है/
ईमानदारी सिर्फ किताबों में
ही बसी है/
और भी न जाने क्या-क्या है
जो देश में जंग लगी कील की
तरह लोगों के पाँव में
चुभने लगा है/
तुम शायद अब कुछ
नहीं कर सकते/
सिर्फ दूर से ही
मानव जाति को विनाश की
और जाते हुए रहोगे देखते---
 


1 comment:

  1. और भी न जाने क्या-क्या है
    जो देश में जंग लगी कील की
    तरह लोगों के पाँव में
    चुभने लगा है/

    Sach Hai Samay rahte Pahal karana aawshyak hai.... Gahari Abhivykti...

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